#मोहिनी_एकादशी
Har Baat Hogi Khaas…
#मोहिनी_एकादशी
मोहिनी एकादशी का व्रत वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है।
इस दिन भगवन पुरुषोत्तम की पूजा-अर्चना की जाती है।(पुरुषोत्तम भगवन विष्णु ने 24 नामो में से एक नाम है, अतः आप भगवन विष्णु, श्री राम और योगिराज श्री कृष्ण किसी की भी आराधना कर सकते है।)
भगवन पुरुषोत्तम की प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराकर अच्छे और शुद्ध वस्त्र पहनाना चाहिए।
भगवान को ऊँचे आसन पर बैठा कर मीठे फलो का भोग लगाना चाहिए। उसके पश्चात् धूप-दीप, नैवेद्य अर्पित करके देसी घी के दीपक से आरती उतरनी चाहिए। आरती उतारने के बाद उनके प्रसाद का वितरण करना चाहिए।
उसके बाद ब्राहम्मणों को भोजन करा कर उनको दक्षिणा देकर उन्हें प्रणाम कर उनका आशीर्वाद ले कर उनको विदा करना चाहिए।
दिन में भगवन का भजन कीर्तन करना चाहिए और रात्रि में उनके चरणों में शयन करना चाहिए।
जो धर्मात्मा व्यक्ति नियम,निष्ठा और भक्ति पूर्वक मोहिनी एकादशी का व्रत करते है वे सब पापो से मुक्त होकर नश्वर शरीर त्यागने के पश्चात् स्वर्गलोक को प्राप्त करते है।
प्राचीन काल में व्यसरा गांव में एक ब्राहम्मण रहता था। उसका एक पुत्र था। ब्राहम्मण ने एक दिन विचार किया की विद्या अध्यन योग्य होने पर अपने पुत्र को काशी में गुरु जी के पास ले जाकर विद्याभ्यास के लिए प्रस्तुत कर दूंगा।
तीन वर्ष बाद ब्राह्ममण अपने पुत्र को लेकर अपने कुल गुरु के पास पहुंचा और उसने घर पहुँच कर श्रृद्धा सहित अपने गुरु को साष्टांग प्रणाम किया। गुरु ने उससे कुशलक्षेम पूछा और आने का कारण पूछा। इस पर ब्राहम्मण ने विनम्र निवेदन किया की “हे गुरुदेव, मेरा पुत्र चंद्रपाल विद्या अध्यन के योग्य आयु का हो गया है, इसे विद्या अध्यन के लिए आपकी सेवा में लेकर आया हूँ, अब यह आपकी शरण में आ गया है, कृपया इसे शिक्षित कीजिये।
ब्राहम्मण का निवेदन सुन कर उसके गुरु ने उसके पुत्र चंद्रपाल को अपनी गोद में उठा लिया और प्रेम करते हुए उस पर वात्सल्य दर्शाने लगे, उसके बाद गुरु जी ने ब्राहम्मण को आश्वासन देते हुए कहा कि ”तुम्हारे पुत्र को मैंने स्वीकार कर लिया है, तुम निन्श्चित होकर अपने घर जाओ, मैं इसे शास्त्रों और वेदों का ज्ञान दे कर बड़ा विद्वान बनाऊंगा।”
गुरु द्वारा आश्वासन पा कर ब्राहम्मण प्रसन्न मन से अपने घर चल पड़ा।
गुरु देव के पास रह कर 25 वर्ष की आयु तक चंद्रपाल ने शास्त्रों और वेदों की शिक्षा ग्रहण की। 25 वर्ष का चंद्रपाल अब एक पूर्ण युवक बन चुका था।
एक दिन की घटना है, संयोगवश चंद्रपाल के गुरु घर पर नहीं थे, वे कशी से बाहर गये हुए थे। घर पर गुरु जी की युवा सुंदरी पत्नी अकेली थी, गुरुपत्नी को देख कर चंद्रपाल के मन में पाप वासना जाग्रत हो गई, उसे विश्वास था कि गुरु पत्नी ऐसे पाप कर्म में कदापि प्रवृत्त ना होगी। अतः चंद्रपाल ने बलपूर्वक विवश कर गुरु पत्नी के साथ रमण किया। उसके पश्चात् वह गुरु के भय से वहां से भाग निकला। भागते भागते वह काफी दूर निकल आया, इतने में दिन समाप्त हो गया और संध्या घिर आई। समीप ही एक कुआ देख कर थका-हारा चंद्रपाल कुँए से पानी खींच कर मुंह-हाथ धो कर और पानी पी कर वहीँ सो गया।
थोड़ी देर बाद शिव-पार्वती घूमते-घूमते वहां आ पहुंचे। पार्वती जी ने देखा कि कुँए के पास कोई सो रहा है तो पार्वती जी शिवजी से कहने लगी ”महाराज कोई दुखी व्यक्ति जंगल में सो रहा है, कृपया चल कर देखिये कि कौन है और क्यूँ इस जंगल में सो रहा है!”
शिव पार्वती जी को मना करने लगे, पर तीव्र जिज्ञासा से वशीभूत पार्वती जी ने शिव जी की बात नहीं मानी, वे शिवजी को वहां ले ही गई।
चंद्रपाल पहले से ही घबराया हुआ था,उसकी नींद थकावट के कारण थी और घबराहट के कारण वो नींद में चौंक कर उठा, उसे किसी के आने का अभाष हुआ, वो नींद में चौंक पर बिना देखे शिव जी के चरणों में गिर पड़ा और ”क्षमा करो, क्षमा करो! यह कह कर रोने लगा,, वह समझा की उसने गुरु जी के चरण पकड़ लिए है।
उसे रोते देख कर शिव जी ने पूछा कि ”तुमने क्या अनुचित कार्य किया है जो इतने भयभीत हो रहे हो! अभय हो कर सत्य-सत्य कहो,, मैं शिव हूँ।”
भगवान की वाणी से आश्वस्त हो कर चंद्रपाल ने अपनी सम्पूर्ण पाप कथा भगवान् को कह सुनाई। उसकी स्पष्ट वादिता और पश्चाताप की भावना देख कर भगवन शंकर दया द्रवित हो उठे। वे बोले ”तुम वैशाख सुदी पक्ष की मोहिनी एकादशी का व्रत करना, उस दिन व्रत रख भक्ति भाव से भगवान् पुरुषोत्तम की पूजा करना, तुम्हारे पाप का यहीं एक मात्र पश्चाताप है।
भगवान् द्वारा इतना जान लेने के बाद जब मोहिनी एकादशी का व्रत आया, तब चंद्रपाल ने पूर्ण विधिवत रूप से व्रत उपासना की, इस व्रत के प्रभाव से उसके सम्पूर्ण पापो का नाश हो गया, और मृत्यु पश्चात् उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।
मोहिनी एकादशी के व्रत -पूजन से जैसे चंद्रपाल का उद्धार हुआ वैसे ही निष्काम भक्तो का भी उद्धार होता है।